STORYMIRROR

Amit Kumar

Abstract Inspirational

4  

Amit Kumar

Abstract Inspirational

ज़िंदा आदमी

ज़िंदा आदमी

1 min
374

मैं आवाज़ दे रहा हूँ उसको

जो आवाज़ सुन रहा है

कोई अपना पराया नहीं है

जो आवाज़ सुन रहा है

यहां सुनकर अनसुना करने वाले

बहुत से होनहार लोग है

जो मेरी आवाज सुनकर

मुझ तक चला आये

मुझे तलाश है उस शख़्स की

मुझ तक आना यानि

वो खुद में कहीं ज़िंदा है

शायद इसीलिए वो भी

इन हादसों से मुझसा ही शर्मिंदा है

यह देश जो मेरा मान है

मेरी पहचान है मेरा गुरुर है

कुछ दहशतगर्दों की सोच से 

बाहर का पुलिंदा है

वो अनेक हो सकते है

लेकिन हम सब एक है

और जब तक हम एक है

कोई भी दहशतगर्द कोई भी आडंबरी

हमें भड़का नहीं सकता

हमारी एकता को मिटा नहीं सकता

यहां चलते-चलते क्षेत्र बदल जाते है

भाषा बदल जाती है 

रँग-रूप बदल जाते है

मतभेद बदल जाते है

लेकिन कभी मनभेद नहीं होता

यह मुहब्बत का दौर है साहिब!

किसी के बहकाने से कम नहीं होता

                


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract