चरित्र का सर्वोच्च सोपान
चरित्र का सर्वोच्च सोपान
काया की ये उजली धूप, सारी बिखर जाएगी
चमकती हुई ये त्वचा, पूरी ही सिकुड़ जाएगी
रूप की सारी रंगीनियाँ, कल नजर न आएगी
यौवन की ये घड़ियाँ, एक दिन सिमट जाएगी
वक्त जब बदलेगा तो, चेहरा भी बदल जाएगा
दमकता ये रूप लावण्य, कालिमा को पाएगा
शरीर की ये सारी चमक, केवल भ्रम का खेल
आखिर कब तक करोगे, देह संग विकारी मेल
और बढ़ेगी इच्छा तेरी, इंद्रियों का सुख पाकर
इक दिन घिर जाएगा, दुखों के चक्र में आकर
जब तक है ये जवानी, भोग विलास में सोएगा
जब लुट जाएगी ये सारी, तो विलाप में रोएगा
समझ ये सच्चाई मानव, रूप रंग सब नाशवान
इसका घमंड छोड़ दे, समझाते हैं खुद भगवान
तन है सबका विनाशी, आत्मा का न होता नाश
देह का मोह त्यागकर, जगा आत्मा पर विश्वास
सीमाओं में बंधा शरीर, किन्तु आत्मा है असीम
आकर बड़ा है तन का, आत्मा है अदृश्य महीन
चिन्तन कर आत्मा का, अतीन्द्रिय सुख पाएगा
विनाशी तन का आकर्षण, पूरा ही मिट जाएगा
आत्मा है अनमोल निधि, मलिन होने से बचाना
चरित्र का सर्वोच्च सोपान, प्राप्त कर दिखलाना
