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Mukesh Kumar Modi

Abstract Inspirational

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Mukesh Kumar Modi

Abstract Inspirational

तुम ही थकते जाओगे

तुम ही थकते जाओगे

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कितना उसे तुम, आवाज देकर बुलाओगे

न आएगा वो कभी, तुम ही थकते जाओगे

अब सुन नहीं सकता, हो गया पूरा बहरा

निष्ठुरता का लगाया, खुद पर उसने पहरा

क्या उसके पीछे तुम, यूं ही वक्त गंवाओगे

न आएगा वो कभी, तुम ही थकते जाओगे

अर्थहीन हुए निवेदन, इनका न कोई मोल

भविष्य के बारे में, कुछ अपने मन से बोल

क्या रोने धोने में ही, जीवन को बिताओगे

न आएगा वो कभी, तुम ही थकते जाओगे

भ्रम को पाले बैठे हो, गए हो मन से हार

होता नहीं जाने क्यों, सत्य तुम्हें स्वीकार

यादों में ही बंधे रहे, तो मुक्ति कैसे पाओगे

न आएगा वो कभी, तुम ही थकते जाओगे

आगे भी चलना है, बीती बातें भुलाते चलो

भव्य होगा जीवन, लक्ष्य पथ सजाते चलो

नयनों से आखिर, आंसू कब तक बहाओगे

न आएगा वो कभी, तुम ही थकते जाओगे

रुकने वाले जीते नहीं, मृत ही वो कहलाते

निष्क्रिय होकर वो, खुद पर ही बोझ चढ़ाते

अपनी खुशियों की, खुद की अर्थी उठाओगे

न आएगा वो कभी, तुम ही थकते जाओगे

ॐ शांति


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