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Archana Srivastava

Abstract

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Archana Srivastava

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'चरागां'

'चरागां'

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चाँद होना था चरागाँ हो गए

रोशनी दे दे धुआँ सा हो गए

रोज़गारी रोज़ीयां देती रही

लुत्फ जीने के रुआंसा हो गए


घर सजाने का रईसी शौक था

शौक से चौके का चूल्हा हो गए

ये हुनर तक़दीर की तामीर का

बदनसीबों के मसीहा हो गए


घोंसले शाखों पे लेके घूमते

पेड़ कैसे यूँ बियाबां हो गए

इन परिंदों को हवायें सर्द थी

धूप लेके हमसे साया हो गए


ईंट ईंटों से रहे जो जोड़ते

ईंट बनके बेठिकाना हो गए

खैरियत से कब्रगाहें मुफ्त हैं

जिस्म रूहों में निहां हो सो गए


इन अँधेरों से कहो आगे बढे

रात भर जीने के अरमाँ हो गए!!!

Archana Danish


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