'औरत'
'औरत'
जहाने पाक ने दोज़ख़
दिखाई रोज़ है जिसको
मुबारक उसको देता है
जहां ये पाक होने की
हंसी आती है तोह्फों पे
ये रोज़े जशन ए 'दानिश'
मनाये हर बरस बरसी
गुलों के राख होने की
हमे क्या हौसला देंगी
ये औलादें हमारी ही
अदब से सर झुकाओ कि
अदब हमसे ही सीखा है
हमे आज़ाद कर देंगे ?
ये कैदी जात के अपनी
मियां हम देते आज़ादी
तुम्हे झूठी इनायत से
फिक्र खुद की करो साहब
जो हम न हौसला देंगे
उठा पाओगे तन्हाई
अकेलेपन में रोने की?
ये माँ की कोख है बेटे
ये आँचल माशूका का है
किया आज़ाद है तुमको
जहाने आग से जिसने
हुनर जीने का हमको तुम
सिखाओ न अरे आदम
सबक ज़िंदादिली का ये
सनम हमसे ही सीखा है
खुदी को हौसला दो अब
ज़रा इंसान बनने का
हमारी गर जरूरत हो
हमें आवाज़ दे देना !