स्त्री
स्त्री
हमारे आस-पास दिख रहा
सब कुछ कितना पारदर्शी है
किंतु यदाकदा
कागज़ के टुकड़ों पर
लिखी शब्दावली
हॄदय चीर देती है !
कागज़ के टुकड़े
जिन्हें अपनी भाषा में
हम अखबार कहते हैं
जिनकी लिखावटें
उजागर कर देती है
सच !
ऐसा सच !
जिसे गर्भ में छुपा हम
पूजते हैं श्रद्धापूर्वक
पाहन की मूर्तियों को
पूजने के लिए उसे
देवी की संज्ञा दी जाती है
तिरस्कार, शोषण हेतु
वह सिर्फ स्त्री है !
रोली, अक्षत, कुमकुम और दीप
हाथों में लिए
आरती करते भक्त
भक्ति के रस में आकंठ तक
डूबे हुए भक्त !
उपासक बने इन भक्तों के किस्से
छपते हैं जब-जब भी
अखबारों में
तब अदृश्य रहता है देवी उपासक
नज़र आता है केवल
एक पुरुष
हाँ ! केवल एक पुरुष !