फगुआ
फगुआ
विदा हुयी शीत फागुन ने दी दस्तक
जलाकर रखती अंगीठी रात कब तक
दर्प की अग्नि में होलिका जल गयी
विधाता की कृपा से भक्ति पल गयी
मन के पोर खोल, चली बसन्ती बयार
प्रेम रंग में रंगे सभी हुए स्वप्न साकार
फूली पीली सरसों, हुयी प्रकृति मुखर
ढोल मंजीरे बजे, फगुआ के गूंजे स्वर
आयी है होली लेके अनेकों रंग
रंगों में भींगी सजनी पिया के संग
होली की मस्ती बढ रही, छन रही भंग
मन बिचलित कर रही गुझियों की सुगन्ध
फागुन की मस्ती में होली का यह सन्देश
रंग हैं अलग अलग पर एक है परिवेश।