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Jaiprakash Agrawal

Drama

3  

Jaiprakash Agrawal

Drama

हिंसा का खेल

हिंसा का खेल

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बन्दूक से गोली न निकले 

निकले पिचकारी से रंग 

कोई शक्स का शव न निकले

निकले नफरत की जंग 


अरे, कोन हो तुम ,

किसको मारते हो?

अल्ला के बंदे हो तुम 

अपने भाई को मारते हो? 


भगवान और अल्लाह मे फर्क

मजहब नही सिखाता 

मरने के बाद यकीनन

इन्सानियत ही साथ जाता


कुर्सी न साथ देगी

इन्सानियत शर्मशार कर के

खुद ही गुनहगार होगे

दंगे मे धार कर के 


राम की राह पर चला जो बापू

राम राम कह चला गया 

आज रहा बस राम का नाम 

न जाने बापू कहां चला गया। 


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