भारत की नारी
भारत की नारी
मैं भारत की नारी हूं
सब पुरुषों पर भारी हूं
बाधाएं चाहे कितनी हों
समय से नहीं मैं हारी हूं।
पुरुष संग कदम मिलाती हूं
बहुयामी जीवन बिताती हूं।
आंखों में आंसू आते हैं
पर हर हाल में मुस्काती हूं।
मां बन जीवन देती हूं
स्त्री बन प्रेम संजोती हूं
कांटों की राह भले ही हो
फूलों की हार पिरोती हूं।
भोग की मैं वस्तु नहीं
खेलने की मैं जन्तु नहीं
त्याग की प्रतिमूर्ति मैं
नाश की देवी किन्तु मैं।
नारी पांवों की धूल नहीं
ह्रदय मे चुभती शूल नहीं
फूलों मे बसती खुशबू है
विधाता की रची भूल नहीं।
घर के आंगन मे खेली बढी़
आज देहरी लांघ चली
कभी पुरुषों की जूती बनी
आज सहकर्मी बन चली।