वनगमन
वनगमन
राम यदि न वन को जाते, राम राम ही न बन पाते ।
रहते भूप अयोध्या के बस, घट-घट में वे न बस पाते।
रावण का वध कैसे होता,
सीता-चरित्र न इस जग होता,
लक्ष्मण-सम भ्रातृत्व न दिखता,
न हनुमान -सा भक्त प्रगटता,
आदर्शों की राम-कहानी तुलसीदास भी न रच पाते ।
राम यदि न वन को जाते ...
सीता जो धरती की बेटी,
धरती की मां न बन पाती,
अग्नि परीक्षा को न सहती,
धरती में ही जा न समाती,
स्त्री के आदर्श सभी संसार के सम्मुख कैसे आते ।
राम यदि न वन को जाते ...
लव-कुश जैसे सुत पराक्रमी,
सीता जा वन में न जनती,
कर्मठ इतने न बन पाते,
जनश्रुति को झुठला न पाते,
अश्रमेघ का अश्व थामने का दुस्साहस न कर पाते ।
राम यदि न वन को जाते, राम राम ही न बन पाते ।
रहते भूप अयोध्या के बस, घट-घट में वे न बस पाते।