दूसरी लहर का कहर
दूसरी लहर का कहर
अस्पताल से लेकर शमशान!
त्राहिमाम! त्राहिमाम!
चारों ही तरफ अब,
मचा हुआ कोहराम!
हर एक है हलकान,
हलक में है जान !
आक्रमण भीषणतम
हुआ मानो,
रक्तरंजित आसमान !
अब तो जैसे कोई भी,
दिखता नहीं समाधान!
पर यह समय नहीं,
होने का हताश।
जीवटता से बना रखना,
जीने की आस।
इस घोर अंधेरी रात में,
हमें स्वयं को जगाए रखना है,
दिया विवेक का जलाए रखना है ।
न केवल स्वयं को,
वरन अपने आसपास सभी को,
ढाढस दे, बचाए रखना है।
इस महादानव से हमें, सहज उपलब्ध
उन छोटे- छोटे अस्त्रों से ही लड़ना है।
अपना चेहरा ढककर,
निश्चित दूरी बनाए रखकर,
मंत्रित- जल की भाँति
सैनिटाइजर की फुहार से-
बस प्रहार करना है।
अपनी संकल्प-शक्ति के बल,
बनोगे पुरुषार्थी प्रबल,
तब इन्हीं लघु-अस्त्रों से वह,
एक दिन हारेगा ही।
और हाँ, अंततः
वैक्सीनेशन रूपी अमोघ अस्त्र से
हथियार एक दिन डालेगा ही।
बस सिर्फ इतना करके ही,
हम उसे हरा पाएंगे।
और निश्चित ही,
यह महान जंग हम जीत जाएंगे !
ये दिन भी एक दिन बीत जाएंगे !