शाश्वत सत्य
शाश्वत सत्य
मानव-शरीर में अवयव कितने,
युगल रूप में पाए जाते,
क्यों पर हृदय एक ही है ?
सोचा कभी, कि ऐसा क्यों है ?
उसमें बसता है वह, जो वह
ईश एक है ! ब्रह्म एक है !
इष्ट और प्रियतम बसता जो,
सिर्फ एक है !
संप्रदाय दुनिया में कितने,
धर्म एक,अध्यात्म एक है !
अंतः सलिला-सी उसमें जो बहती रहती,
मानवता वह होती एक है !
प्रवहमान जो लहू है उसमें,
सब में उसका रंग एक है !
शाश्वत सत्य, चिरंतन सब यह,
होता अतएव तो सदा एक है !!