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Anup Kumar

Inspirational

4  

Anup Kumar

Inspirational

संवेदन

संवेदन

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पशु से करता पृथक मनुज को, मन का वह संवेदन है। श्रेष्ठ बनाता हमें सृष्टि में , है जो बस विह्वल मन है ।

बनकर अश्रु बहा करता जो करुण- नयन में ,

परिलक्षित अर्चन- वंदन- सम होता जो मन के आँगन में,

संरक्षित अस्तित्व जो रखता, आत्मा का स्पंदन है !

पशु से करता पृथक मनुज को ... ... ...

बिन जिसके पनपा न कोई प्रेम का बिरवा शुष्क धरा पर,

पिघला न पाया है पत्थर प्रभु भी आकर,

भावों का निर्मल निर्झर वह ,चेतन का उद्दीपन है !

पशु से करता पृथक मनुज काे ... ... ...

दुनिया के सारे धर्माें में महिमा इसकी गाई जाती,

इसके ही दम सदा-सर्वदा मानवता बन जाती थाती,

भावलोक का दिग्दर्शन यह, मानस का यह दर्पण है !

पशु से करता पृथक मनुज को ... ... ...

ईंट और गारे से मिलकर भव्य इमारत बन जाती है,

भावों के आरोपण से वह पावन मंदिर बन पाती है ,

अनुप्राणित हो सका उन्हीं से, मूरत का हर कण-कण है !

पशु से करता पृथक मनुज को ... ... ...

कर्म- विपाक के देख त्रास सिहरन-सी आ जाती तन में ,

पीड़ित की व्याकुलता भी जब छाने लगती है निज मन में,

उन्नत भाव- रंगों से होता, निर्मित एक आलेखन है !

पशु से करता पृथक मनुज को ... ... ...

सहिष्णुता की अलख जगा लेना अंतस में,

परस्वार्थी बन रहना करके स्व को वश में ,

भव-भव के संचित पुण्यों से, मिलता यह मनुष्य तन है !

पशु से करता पृथक मनुज काे ... ... ...

पशु से करता पृथक मनुज को, मन का वह संवेदन है।

श्रेष्ठ बनाता हमें सृष्टि में, वह केवल विह्वल मन है ।


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