दृष्टि पुष्प के प्रति
दृष्टि पुष्प के प्रति
पुष्प भले मुरझा जाएं पर, सुरभि बिखेरते ही रहते हैं।
जीवन में सद्कर्म किए जो, स्मृति में जिंदा रहते हैं ।
तुम जो चाहो यदि जीवन को कुछ ऐसे ही सफल बनाना।
प्रेरणा पा सूखे सुमनों से, पुष्प वृत्ति को तुम अपनाना ।
गुल की खुशबू कभी भी गुल से गुल न हो सकती है।
मुरझाए भी गुल की खुशबू फिजा में घुल सकती है ।
खिला रहे या मुरझाए गुल, सदा पराग महकता रहता।
देह भले अतीत हो जाए, आत्म तत्त्व शाश्वत हो रहता ।
