वीरों की टोलियाँ
वीरों की टोलियाँ
लो निकल पड़ीं फिर, वीरों की टोलियाँ ,
झंकृत होने लगीं, जय हिंद की बोलियाँ ,
सरहद पार तोपें अब, उगलेंगी गोलियाँ ,
दहनकरने दुश्मनों का,जलेंगीअब होलियाँ।
वीरों के हृदय लहू, कर रहा अठखेलियाँ ,
व्यग्र हुआ नष्ट करने, शत्रु की रंगरेलियाँ ,
नापाक मंसूबे उसके,पस्त होकर ही रहेंगे,
थर्रा उठेंगी सभी , बैरी की हवेलियाँ ।
शांति- हित कपोत अब तक,उड़ाए हमने बहुत,
सिंह-सी दहाड़ ही अब, बनेगी इसका सबब ,
कोई भी मुगालता ,शेष न रहेगा अब -
भीख को भी तरसेंगी, तुम्हारी अब झोलियाँ।
फौलादी हैं मंसूबे जो , कोई अब न तोड़ पाएगा ,
छल कितनाभी कर ले चाहे,सफल नहीं वह हो पाएगा,
दर्प तुम्हारा एक दिवस तो , चूर -चूर हो ही जाएगा ,
सुलझ कर ही रहेंगी अब , अबूझ जो पहेलियाँ।
लो निकल पड़ीं फिर, वीरों की टोलियाँ।
झंकृत होने लगीं, जय हिंद की बोलियाँ।