मेरे आदर्श
मेरे आदर्श


आईना कहूँ उन्हें तो कोई हैरत नही हूँ।
हमारे अक्स को एक शख्सियत बनाया उन्होंने।
हर कदम पर दृढ़ निश्चय और विश्वास बनकर।
कठिनाइयों की राह को आसान बनाया उन्होंने।
इंसानी रूप में छवि , गुरु ब्रम्हा की है।
माँ सरस्वती के ज्ञान भण्डार को हर पल बढ़ाया उन्होंने।
हाथों में छड़ी माना कटुता की निशानी है।
पर उस डर पर काबू करना सिखाया उन्होंने।
वो ना होते तो ,अनेको राह सुनी होती।
उन अनजान राहों को मंजिल बनाया उन्होंने।
हाँ सच है पहली गुरु, और शिक्षक, माँ थी, माँ है, और माँ रहेगी सदा।
पर उस माँ के स्वरूप को खुद में निहित कर, आगे बढ़ाया उन्होंने।
हम देश का गौरव बने , इसीलिए वो ताउम्र शिक्षक बने रहे।
पर इस बात को कभी ना दिल से लगाया उन्होंने।
किना जाने कितनी गलतियों को , सीख में बदलने का हुनर सिखाया है।
गर्त में गिरे भी अगर तो, संभलकर निकलना सिखाया है।
सिखाया नही कभी खुद पर घमंड करना उन्होंने
हर किसी की मदद कर सके ऐसा बनाया है उन्होने।
भूल जाते है हम कभी कभी, उन ऊंचाइयों पर पहुँच कर
की उस ऊँचाई का पहला कदम , सिखाया उन्होंने।
नमन करती हूँ ऐसे शिक्षकों को सर झुका कर मैं।