हाँ मैं नारी हूँ अबला नही, शक्तिहीन नही,ना ही मैं बेचारी हुँ
हाँ मैं नारी हूँ अबला नही, शक्तिहीन नही,ना ही मैं बेचारी हुँ
हाँ मैं नारी हूँ
अबला नही, शक्तिहीन नही,ना ही मैं बेचारी हूँ
चाहें कौतूहल हो सीने में, चाहे नीर छुपाऊँ पलकों में
पर प्यार लुटाने वाली मैं, इस जग की जननी हूँ
हाँ मैं नारी हूँ।
हर घर भर की नींव हूँ मैं, अन्नपूर्णा कहलाती हूँ
खुशियों का संसार हूँ मैं, जीवन का आधार कहलाती हूँ।
एक घर के संस्कार से दूजे घर को बसाती हूँ।
हाँ मैं नारी हूँ।
आन बान ओर शान हूँ मैं, दुर्गा भी कहलाती हूँ
जब चोट लगे अपनों पर तो, काली भी बन जाती हूँ।
हाँ मैं नारी हूँ
मुझसे ही तीज त्यौहार चले,मैं संस्कृति को बढ़ाती हूँ
एक पीढ़ी से दूजी पीढ़ी तक, रीत यही मैं निभाती हूँ
सहनशक्ति की धरा हूँ मैं, अपमान तक पी जाती हूँ।
हाँ मैं नारी हूँ
कमजोर नही,खामोश हो जाती हूँ
इसी खूबी से, घर को बचा पाती हूँ
आक्रोश नही कम मुझमे भी, अग्नि भी बन जाती हूँ
शीतल रहे तुम्हारी दुनिया, इसीलिए नीर बहाती हूँ।
हाँ मैं नारी हूँ
जिसके आगे हाथ फ़ैलाते, उसी लक्ष्मी का रूप हूँ मैं।
जिस ज्ञान का मुझको घमंड दिखलाते, उसी सरस्वती की छाया हूँ।
साहस ,त्याग, दया और ममता, इनकी स्वामिनी कहलाती हूँ।
हाँ मैं नारी हूँ
कभी माँ बनकर, आँचल भर भर आशीर्वाद लुटाती हूँ।
बनकर बहन ,रेशम की डोर में, दुआएँ साथ में लाती हुन
कभी पत्नी बन, जीवनभर साथ तुम्हारा निभाती हूँ।
कभी बनकर बेटी , अनन्त कोटि, वात्सल्य बरसाती हूँ!