स्त्री , जैसे नदी की आत्मकथा
स्त्री , जैसे नदी की आत्मकथा
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नदी की आत्मकथा, नारी के जीवन की एक कहानी है
एक छोर छोड़ के दूजे छोर बह जानी है।
पलट के देखो इतिहास ,उसमे छुपी बहुत सी कुर्बानी है
नदी की ....
तृप्त करके सबको, ख़ुद को अमर कर जानी है।
किसी ने गंदे मैल को धोया इसमें,
किसी की जिंदगी इसमें तर जानी है।
पावन है वो आत्मा से,
पर ये बात किसी को समझ नहीं आनी है
नदी की आत्मकथा....
कहने को तो शिव के शीश में समाई है।
गंगा, यमुना, सरस्वती के नाम से भी जानी है।
फिर भी लोगों के पापों को ख़ुद में समेटी है।
नदी की आत्मकथा....