रास्ते का सच
रास्ते का सच
उम्र की ढलान पर
साधते हुए कदमों को
चलती हूं, सामने राहों पर
अनगिनत सवाल हैं
फैले हुए, सूनी सड़कों पर
मिलते नहीं जवाब
सफर बदलते हुए, पड़ावों पर।।
उम्र की ढलान पर
बादलों से भरे आसमान को
भरती हूं, भरी हुई निगाहों में
अनगिनत सवाल हैं
संग बहती हुई हवाओं में
मिलते नहीं जवाब
रुख बदलती हुई, पनाहों में।।
उम्र की ढलान पर
हरी भरी धरती की
महसूस करती हूं, कराहों को
अनगिनत सवाल हैं
उग आए अनचाहे, दूबों को
मिलते नहीं जवाब
वृद्ध हो रहे, सम्हलते हुए वृक्षों को।।
उम्र की ढलान पर
टटोलती हूं, राख को
बची है, आंच अभी भी अलावों में
अनगिनत सवाल हैं
रुक रुक कर उठते हुए धुओं में
मिलते नहीं जवाब
सुलगते हुए, रूहानी धुंधलकों में।।
उम्मीद है, अनुत्तरित नहीं रहेंगे
सारे सवाल
मिल जाएंगी राहें, ईश की कदमों से!!