सपने
सपने
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देखता है कौन
भींगी पलकों को
समेटता है कौन
बिखरी अलकों को
है, कौन वो अपना कहने को
पूरे करता है, जो उनके सपनों को।।
ढूंढता है मन, स्नेह
यहां वहां रिश्तों में
सम्हालता है, खुद को
ढेर सारे किश्तों में
बिखरे - बिखरे पन्ने हैं, जीवन के
बंधता नहीं अब, जिल्दों और जिस्तों में।।
हवाएं कभी नरम और
कभी गरम, चलती हैं
सांझ, उदासीन हो
अक्सर, रात में ढलती हैं
भोर के इंतजार में, आंखें
बस, नींद और सपनों में भटकती हैं।।
