वक्त
वक्त
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रूठना क्या मेरे मन--
सरकता है वक्त, क्षण-क्षण
मुदत्तों से ये बैरी है मेरा
हाथ पकड़ूँ, फिर भी रुकता नहीं।।
कदम-दर-कदम
करती हूँ कोशिश, साथ चलने का
ये वक्त है, मेरे मन
कभी भी मुझे समझता नहीं।।
प्रकृति ने ढ़ाल लिया
खुद को, इसके हवाले किया
विभीषिकाओं में भी अब
बहुत देर तक, यह ठहरता नहीं।।
