भटकता इंसान
भटकता इंसान
इतनी दरिंदगी
इतनी हैवानियत
कहां से लाते हैं
ये नौजवान
कैसे, हम सोचें
कैसे, संवारेंगे
ये अपना हिंदुस्तान...??
कौन सा नशा
बना देता हैं, भक्षक
कोख और दूध को
करके कलंकित
कौन सा पाठ पढ़के
कैसे, ये बनेंगे रक्षक...??
हो रहा, अवमूल्यन
रीति रिवाजों का, हरपल
परिवार की संरचना
रही है बिखर
मानव - मूल्यों का मनका
गूंथना होगा, संजीदगी से
गढ़ना होगा, प्रतिक्षण/ प्रतिपल।।
रात के अंधेरे
तार तार कर दामन
घिसट कर जिंदगी को
मना रहे, कैसा आनंद
नहीं सही जाती, पीर ये गूंगी
लिए सुदर्शन......
कान्हा, उतरो, अब आंगन।।