स्त्री हूं.....
स्त्री हूं.....
धरा हूँ, हवा हूँ, आग हूँ, पानी हूँ
वक्ष से लगा,
स्नेह- सुधा बरसा,
ऊष्मा और ऊर्जा दे
अमृत से सींच- सींच
सृजन और पालन-पोषण के लिए
युगों-युगों से, जरूरी जिंदगानी हूँ,
स्त्री हूँ-----
प्रकृति में रूप आसमानी हूँ।।
झेलती, विभीषिका औ त्रासदी को
समेटती, बवंडर और आँधी को
प्रज्वलित करती, ध्येय-शिखा को
सींचती, प्रेम से दशा-दिशा को
श्वांसों और धड़कनों के लिए
नस- नस में बहती, रक्त की रवानी हूँ,
स्त्री हूँ-----
प्रकृति में सत्य और शिवानी हूँ।।
तोड़ सकूँ, जीवन को
झकझोर सकूँ, अस्ति को
भस्म कर सकूँ, व्यष्टि को
प्लावित कर सकूँ, समष्टि को
पापियों/ व्यभिचारियों के लिये
दुर्गा- क्षमा का रूप-- काली भवानी हूँ,
स्त्री हूँ------
काल के क्षण-क्षण की, जीवित कहानी हूँ।।
स्त्री हूँ------
जिजीविषा और धैर्य की जीवित निशानी हूँ।।