स्वयं की खोज
स्वयं की खोज
जी चाहता है.......
पगडंडियां खोजें
अपने कदम बढ़ाने को
राहें, समानांतर होती हैं
मंजिल की तरफ, चलती हुई
और पगडंडियां...............
टेढ़ी - मेढ़ी, संकरी, चौड़ी
भटक - भटक कर चलती हुई
ख़ुद को खोजने का अहसास लिए
दूर या पास, किसी और
पगडंडी पर, कुछ पाने का आस लिए।।
यूं ही जीते हुए........
साल - दर - साल
सांसों और समय को
कर्तव्यों के घेरे में
मृत्यु की तरफ बढ़ती हुई
इसलिए, समेटती हूं शब्दों को
भावनाओं के तार में
भटकन से, खुद को रोकने के लिए
कि कविताएं , देती हैं
सामर्थ्य, स्वयं, सहर्ष जीने के लिए।।