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shaily tripathi

Abstract Inspirational

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shaily tripathi

Abstract Inspirational

मन का बिरवा

मन का बिरवा

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मन की धरती पोली करके, 

आशाओं से सिंचित करके 

सपनों को मैंने देखा था, 

वह एक बीज जो सोया था, 

माटी में मैंने बोया था, 

मेरी आँखों का सपना है, 

आगत भविष्य जो अपना है 

उसमें कुछ दृश्य महकते थे 

मन को मोहित कर देते थे 

इस पल को भूल चहकती थी 

मीठे भविष्य में खोयी थी 

इक बाग मधुर फल-फूलों का 

मेरे चहूँ ओर झूमता था 

कुछ पंछी मधुर कूजते थे 

भँवरे फूलों पर झूले थे 

कुछ फल के गुच्छे लटक रहे 

डालों को नीचे झुका रहे 

नम तुहिन बिन्दु पत्तों पर थे 

हीरों से झिलमिल करते थे, 

पपिहा टिहुँका उस झुरमुट से 

मैं जाग उठी थी सपनों से 

इक नन्हा पौधा सम्मुख था 

मरकत मणि सदृश चमकता था 

इस कोमल पौधे में शिशु सा 

आकर्षण लक्षित होता था, 

जैसे शिशु में गुण, बीज रूप 

एक पूर्ण पुरुष के होते हैं 

वैसे ही नन्हे पौधे में 

सब गुण वृक्षों के होते हैं 

जो नन्हा पौधा है इस दिन 

आगे एक सघन पेड़ होगा 

छाया देगा फल आयेंगे 

कुछ तप्त पथिक सुस्तायेंगे

उड़ने वाले कितने पंछी 

अपने घर - नीड़ बनायेंगे 

धरती की नमी बची होगी 

लतिका- तृण उगते जायेंगे 

धरती पर हरियाली होगी 

पशु-मानव खुश हो जायेंगे 


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