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Chandresh Kumar Chhatlani

Abstract

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Chandresh Kumar Chhatlani

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कर्मशील भिखारी

कर्मशील भिखारी

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मैं तुम्हें नहीं जानता नववर्ष

तुम किसके भेजे दूत हो?

तुम्हें मेरे लिए

किसी फ़रिश्ते ने भेजा है

या शैतान ने,

मैं नहीं जानता यह भी।

कौन जान सका है?

सिर्फ इतना जानता हूँ

तुम आने वाला समय हो...

अगले कई दिनों के उपनाम।

शायद इसलिए सारी दुनिया

तुम्हारा स्वागत करती है।

तुम्हारे साथ किसी की नौकरी का कॉन्ट्रैक्ट

ना आगे बढ़े शायद...

या शायद किसी के कॉन्ट्रैक्ट में

हो जाए इज़ाफा,

तुम्हारे उपनाम के खत्म होने तक।

मुझे समय से यह भय लगता है

कुनबा जो देख पाता हूँ।

अगर मैं अकेला होता तो,

अकारण तुमसे लड़ता ज़रूर।

मेरी लड़ाई अब तुमसे नहीं, तुम्हारे साथ

मेरा कॉन्ट्रैक्ट दुहराने के लिए होती है,

अजीब सी लड़ाई है

इसमें हिंसा नहीं...

दया की याचना है।

मेरे लिए कोई आश्रम नहीं, कोई योजना नहीं।

ना सरकार सोचती है, ना ही नियोक्ता।

वो बात और है कि

मैं किसी परमानेंट कर्मचारी से

ज़्यादा काम करता हूँ।

ज़्यादा पढ़ता हूँ – नए गुर जानता हूँ,

लेकिन हुक्म उनका चलता है,

हुक्मरान उनसे डरते हैं।

'काश!' - यह शब्द जाने कितनी बार

कहता हूँ - सोचता हूँ।

मैं समर्पित हूँ

मेरे काम के प्रति...

मेरे ऑफिस के प्रति...

लेकिन जाने कब मेरा ऑफिस

मेरे प्रति समर्पित होगा?

नववर्ष! क्या तुम्हारे उपनाम के साथ

मेरे ऑफिस का समर्पण होगा?

तुम ही बताओ...

आखिर तुम किसके दूत हो?


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