प्रेम राग ...
प्रेम राग ...
छेड़कर तुमने प्रेम राग,
मेरे मन के अथाह सागर में ...
लहरों का शोर उठा है !
विरह की मुरली गूंजी तो,
मिलन श्रृंगार का रस जगा है ....
अश्रु ने अपने राग छेड़े है,
तो मन के डर का कोहराम मचा है ...
हृदय स्पंदन की गति तीव्र है,
शब्दों की गूंज में भी,
शब्द ठहरें हुए हैं .....
होंठों पर मुस्कान,
पर दिल किसी भंवर में डूब रहा ....
अब दिल को ... दिल के,
शब्दकोश की तलाश है ....
हवाओं में संदेश है,
तो उसको पढ़ने की आस है ....
प्रेम की परिभाषा कुछ यूं हुई,
अंधकार में भी जैसे,
कोई रोशनी की आस हुई ....