पूर्ण प्रेम ...
पूर्ण प्रेम ...
हाँ मैं चाहती हूँ ....
हमारा प्रेम पूर्ण रुप से ,
राधा-कृष्ण की तरह रहे ...
बिछड़कर भी ,
कभी हम ना बिछडे़ .....
हर क्षण ये ,
विरह-मिलन में ही लिप्त रहे ...
सत्य के अंधियारों मे तुम रहो ,
सोच के उजालों मे भी तुम रहो ...
हम-तुम पूर्ण भी रहें ,
रहे .... और अधूरे भी ....
दोनों में रह जाए ,
कुछ आधा-आधा .....
तुम बन जाओ मेरे श्याम ,
मैं बन जाऊँ तुम्हारी राधा .....