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varsha Gujrati

Romance

4  

varsha Gujrati

Romance

प्रेम ब्रह्मांड ....

प्रेम ब्रह्मांड ....

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मेरे प्रेम ब्रह्माण्ड का,

सौर मंडल हो तुम ....

जिसके वृत के चारों और,

घूमती है मेरी सांसे ....


जो ऊर्जा से उत्तेजित,

रखता है तुम्हारे प्रति ...

मेरे विश्वास को ... !


आकाशगंगा के स्वरूप की,

तरह है तुम्हारे हृदय के ....

हर भाव से मुझे ,

चीत-परिचित रखता है .....


गुरुत्वाकर्षण की तरह,

खिंचता है मुझे ...

तुम्हारा निस्वार्थ प्रेम ...!


प्रेमधुरी से बांधे रखता है,

हमें एक-दूसरे के लिए ...

और कभी-कभी हृदय,

बन जाता है वो मंगल ग्रह ....

जहाँ मन के रहस्य को हम,

छुपा लेते हैं ....


हमारे क्रोध का ज्वालामुखी भी,

फूटता है .....

और बहता है तो,

बहती हैं असंख्य ....

प्रेम धाराएँ ...!

जिसमें हम दोनों ही,

बह जाते हैं ....

और बन जाते है हम ....!


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