STORYMIRROR

Taj Mohammad

Abstract

4  

Taj Mohammad

Abstract

इश्क के नजरानें में।

इश्क के नजरानें में।

1 min
402

जा हमनें खुशियाँ दे दी तुझको अपने इश्क़ के नज़राने में।

बेरुख़ी तो देखो तुम्हारी तुमनें नज़र भी ना उठाई सुकरानें में।।1।।


कभी कभार हमसे भी गुफ़्तगू कर लिया करो यूँ हँस कर।

वैसे कुछ भी जाता नहीं है किसी का भी थोड़ा सा मुस्कुरानें में।।2।।


यह ज़ख़्म है दूसरा जायेगा ना इन दुनियाँ के नीम-हकीमों से।

मरीज-ए-इश्क़ की ग़म की दवा मिलती नहीं है इनके दवाखाने में।।3।।


सभी को लगता था उसने जी है अपनी ज़िन्दगी बड़ी बे रूखी में।

हुज़ूम तो देखो जनाजे का सारा शहर ही आया है उसको दफ़नाने में।।4।।


वह जानें नहीं देता है किसी को भी कोठी के उस अंधेरे हिस्से में।

शायद कुछ पुराने राज छिपे है नीचे उस बंद पड़े तहखाने में।।5।।


सुनना कभी गौर से उस आलिम की तकरीरों को अकेले में तन्हा।

उसको बड़ी महारत हासिल है कौम को मज़हब के नाम बड़कानें में।।6।।।


अभी भी वक़्त है आ जाओ तौबा करके उसकी रियासत में।

थक जाओगे लेतेे लेते इतना कुछ है मेरे ईलाही के ख़ज़ाने में।।7।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract