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Taj Mohammad

Abstract Tragedy Action

4  

Taj Mohammad

Abstract Tragedy Action

शबे दर्द जाती नहीं

शबे दर्द जाती नहीं

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4

शबे दर्द जाती नहीं खुशी की सहर आती नहीं।

जाने क्यूं जिंदगी अब वक्त सी गुजर पाती नहीं।।


तमाम उम्र सफ़र में रहा मुसाफिर सा बनकर।

आंखे भी जानिब ए मंजिल की डगर पाती नहीं।।


सीना सीख लिया है मैने अपने गमों को अंदर।

खुशियां आंखों में अश्को की लहर लाती नहीं।।


कैसे बुझे तिश्नगी आब की सेहरा में परिंदे की। 

आसमानों से बारिश की कोई ख़बर आती नहीं।।


देखो जंग ने क्या हालत कर दी है शहरों की।

खाली पड़ी है बस्तियां जिंदगी बशर पाती नहींं।।


दिल्लगी में न टूटे दिल तो सच्चा इश्क कैसा।

चलती रहती है जिंदगियां हमसफर पाती नहीं।।


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