वो बदल रहे हैं
वो बदल रहे हैं
ऐ जिंदगी दो कदम तू भी तो चल हम कबसे चल रहे हैं।
ठहरी पड़ी हैं तू वक्त के जानें कितने लम्हे गुजर रहे हैं।।
कुरान की आयते जाने कबसे याद तो हम भी कर रहे हैं।
पर इनमे से एक भी समझ में आती नही बस रट रहे हैं।।
झुकी निगाहे उनकी बज्म में कितने सवाल कर गई हैं।
हम तो हैं रिश्ते में वैसे ही जैसे थे पर वो बदल रहे हैं।।
सियासत दानों ने एक दूसरे को गले मिलने न दिया हैं।
बंद कर दो लड़ाई मज़हब की जिसमे सब लड़ रहे हैं।।
दौलत की ये भूख जानें कैसे कैसे काम करवा रही हैं।
ये कैसे हैं इंसा जो मासूम बच्चों की तिजारत कर रहे हैं।।
ऐसा नहीं हैं कि उनमें कुव्वत नही हैं तुमसे लड़ने की।
पर हैं वो गरीब तेरे जुल्मों सितम पर सबर कर रहे हैं।।