नहीं होता सब्र लिफाफे में राखी
नहीं होता सब्र लिफाफे में राखी
खत आया है, भीगी पलकों की याद भेज रही हूँ
हर बार कहते हो, इस बार आऊँगा।
फिर इस बार तकती राहों की गाज भेज रही हूं
नहीं होता सब्र लिफाफे में राखी डालकर,
कुछ करके आ जाओ इस बार, ये अर्जी भेज रही हूँ
माना भार है कंधों पर इस देश का तुम्हारे।
पर मेरी भी जिम्मेदारी है, ये याद दिला रही हूँ।
भूल गए तुम खेल खिलौने, सावन की यादों के झूले।
लिख कर खत वह यादों का भंडार भेज रही हूं।
पाकर खत भैया की आंखें भर आई।
भैया ने भी शिकायत के बदले कुछ बातें फरमाई।
ना भूला हूं मैं वह बातें ना बिसरी भूली यादें।
बस भूल गया हूं जीना खुद में और खुद की सौगातें।
जाने कितने लोगों ने मुझसे है आस लगाई।
जो छोड़ गया जंग बीच में, कौन करेगा भरपाई?
देख के तेरी राखी बहना याद मुझे भी आई।
वादा करता हूं इस बार नहीं, अगली बार तो मैं आऊंगा।
संग अपने मैं सारी सौगातें और ढेर सारे उपहार लाऊंगा।