सच
सच
एक किस्से को याद कर,
जाने दिल कितनी बार रोता है,
अरे उसने कहा मैंने सुना ,
बस ये किस्सा यहीं खत्म होता है।
उस की हद है कि
वो अच्छा कह नहीं सकता,
ये दिल जानता है फिर भी ,
अपने दायरे में रह नहीं सकता ।
वो मुझसे झूठ कहता है ,
फिर कोरे पन्ने पर तहजीब लिखता है ,
अरे, सच जानती हूँ मैं फिर भी ,
उसमें मुझे यकीन दिखता है ।
सौदे कितनी ही किए उम्र भर ,
कुछ जीते और कुछ हार गए,
मगर मसला तो तब हुआ जब,
किस्मत के खिलाफ हम बाजी मार गए।