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Anjali Kashyap

Abstract

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Anjali Kashyap

Abstract

साज़िश

साज़िश

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कोई कहता है हँसना है,

कोई कहता है रोना है,

मगर हक़िक़त तो ये है की,

वही होगा जो होना है ।


मैने लाख कोशिश की,

मगर दिल कब ही सुनता है,

जो अपने हक़ में हो उसके,

वही वो राह चुनता है।


की मैने एक दफ़ा बोला,

यकीं न कर यूँ बातों का,

अब दिन बीतते हैं बस,

हैं ठहराव रातो का।


न जाने कैसा सौदा है,

नफा हर बार होता है,

मिले कुछ चाहे न भले इसको,

सुकून हर बार खोता है ।


गली जो उलझनो की है,

वो मेरे घर को आती है,

और साजिश तो ज़रा देखो

ये मन को भी तो भाती है।


हुनर कुछ इस कदर बक्सा ,

खुदा ने हमको सहने का,

की मौका मिल भी जाए तो,

दिल नही करता कुछ कहने का।


ये गुत्थि जिंदगी की,

जो ज़रा सी भी सुलझ जाए ,

कुछ हसीं पल अदा कर के,

चाहे फिर उलझ जाए।


शर्म आए गमों को इस कदर,

की कुछ पल पर्दे में रुक पाए,

और जो सीने पे पत्थर रखते हैं,

वो भी सजदे में झुक जाए।



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