बाल्य बचपन
बाल्य बचपन


बो बचपन भी बहुत खूबसूरत था,
झूलों के झोकों में ख्वाहिशों का मेला था,
वो बचपन भी बहुत खूबसूरत था
इमली के बूटे थे, और दोस्तों का झमेला था,
हाथों से मिट्टी के घरौंदे बनाते थे,
रंग बिरंगी तितलियों के पीछे भागा करते थे,
दोस्तों की लंबी कतार से, रेलगाड़ी बन जाती थी
गिल्ली डंडे की मार में होशियारी नजर आती थी
ना माता पिता को चिंता थी, अपने लाल की
ना लाल को घड़ियां कैद कर पाती थी।
सोचती हूँ कभी कभी, आज का बचपन कहाँ खो गया।
किताबों में डूब गया, या तकनीकी में सो गया।
आज बच्चों की टोलियां नजर नही आती,
पूरी जिंदगी उनकी एकांत में, बीत जाती,
आज दादा ,दादी,नाना ,नानी भी कोई कहानी नही सुनाते,
सपनों की आज कोई बगिया नही है,
आगे बढ़ने की धुन में कतारें लगी है।
सोचती हूँ कभी कभी, आज का बचपन कहाँ खो गया