आंतरिक हँसी
आंतरिक हँसी
हँसो !
यह तो भगवान की नेमत है,
हम सबके लिए,
बड़ी खूबसूरत-सी !
यह शरीर और मन
दोनों को प्रसन्न करती है,
एक साथ ही ।
इससे बढ़कर बहुमूल्य वस्तु
मनुष्य के पास और नहीं ।
इससे अच्छी औषधि भी
और नहीं है दुनिया में ।
जी से हँसो,
अच्छा लगेगा ।
जो हँसता है,
वह कभी बुरा नहीं हो सकता ।
अपने मित्र को हँसाओ,
वह अधिक उल्लसित होगा,
तुम्हें भी आनंदित करेगा ।
शत्रु को हँसाओ,
वह तुम से घृणा कम करेगा,
तुम पर भरोसा करेगा ।
उदास को हँसाओ,
उसका दुःख घटेगा ।
निराश को हँसाओ,
उसमें विश्वास जगेगा ।
एक बुजुर्ग को हँसाओ,
वह बुढ़ापे की मुश्किलों से बखूबी लड़ेगा ।
बालक को हँसाओ,
उसका स्वास्थ्य दिनों-दिन तेज गति से बढ़ेगा ।
जीवन के कठिन वक्त में,
चिंता में व कष्ट में,
दुरुह कार्यों के करने में कदाचित
हुई शिकस्त में
ढाढस व उम्मीद बनी रह सके,
उस हेतु -
एक बड़ी प्यारी, न्यारी वस्तु दी है,
हमको भगवान ने -
वस्तुतः वह है सरल, सहज एवं सुंदर
आंतरिक हँसी !