आँसू
आँसू
रोक ले इन आँसुओं को,
भेज रण में मुझे हँसकर,
कर देंगे कमजोर मुझे ये,
लड़ते हुए युद्ध भूमि पर।
तू तो मेरी प्यारी माँ है,
छलके आँसू वृत्ति सहज है,
पर जाने क्यों लगता मेरी,
शूरवीरता पर संशय है।
तू तो है सच एक सिंहनी -
तनुज मैं तेरा शेर का बच्चा!
दूध पिया है मैंने तेरा -
गढ़ रह सकता कैसे कच्चा !
आशीष प्राप्त है पिता का मुझे
स्वर्गासीन दे रहे मुझको।
लहू दाैड़ता उनका रग में,
भरे हुए रोमांच हृदय जो।
कसम आज है उसी लहू की-
उसका मान न मिटने दूँगा,
लड़ते-लड़ते गिर भी जाऊँ,
तिरंगा कभी न झुकने दूँगा।
रख विश्वास अटल मुझ पर तू
युद्ध जीत वापस आऊँगा,
किंतु अश्रु बिल्कुल न बहाना,
प्राप्त वीरगति को हो जाऊँ !
तेरा साथ अवश्य छूटेगा,
दुःख इसका निस्सीम ही होगा,
सोच ये मन को ढाढस देना,
साथ पिता का इसे मिलेगा।
प्रभु से है बस यही प्रार्थना -
जग में फिर जब भी मैं जन्मूँ,
इसी देश की माटी में ही !
कोख जन्मने तेरी ही मिले
धारूँ फिर से इसी वेश को !
माँ तेरी और मातृभूमि की -
सेवा कर फिर धन्य हो सकूँ!
कसक शेष तेरी सेवा की -
अगले भव मैं पूर्ण कर सकूँ!