STORYMIRROR

Divyanjli Verma

Inspirational

4  

Divyanjli Verma

Inspirational

आजादी

आजादी

1 min
236


रात के अंधेरे मे 

इस सुनसान जंगल में 

नहीं लगता उतना डर 

जितना लगता था 

महल की उस चारदीवारी मे 

कभी इज़्ज़त के लिए 

और कभी संस्कार के लिए 

कभी व्यवहार के लिए 

और कभी साजो श्रृंगार के लिए।

यहा तो खुली है जमीन 

खुला है आसमान ।

इंतजार है अब सुबह है 

जब रात ढल जाएगी 

दूर हो जाएगा ये अंधेरा 

चारो तरफ सूरज की

किरणें फैल जाएगी 

फिर यही बना के

एक छोटा सा आशियाँ 

हमेशा के लिए बस जाएगी 

जहां ना होगा समाज के

 रीति रिवाजों का डर 

ना होगी चारदीवारी की परम्परायें 

ना कोई नियम कानून सताएगे ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational