अजनबी कोई अपना सा
अजनबी कोई अपना सा
हर पल जिसको सोचती रहती हूं,
यादों में जिसके खोई रहती है,
जिसके रूठ जाने से डरता है मन,
न जाने उस अजनबी से क्यों है अपनासापन।
जिसके लिए बहुत से ख्वाब सजाए है,
जिसके लिए मोतियों के हार मंगवाए है,
जिसके लिए करते है साज ओ श्रृंगार,
कहते है सब उस अजनबी से मुझको है प्यार।
जिसके देखने से हम शरमा जाते है,
न देखे तो हम घबरा जाते है,
जिसके लड़ने में भी छिपा होता है प्यार,
मनाते है जिसको दिन में पचास बार,
शायद उस अजनबी से मुझको है प्यार।
मेरी सुबह की पहली सोच है वो,
और रात का आखिरी ख्याल,
सपने में भी उससे होती है बाते हजार,
सबके सामने कहते है उसे अजनबी,
पर दिल ही दिल में करते है बहुत प्यार।
