आजादी की जंग
आजादी की जंग
दुश्मन था मजबूत
धोखा करने और छलने में
रणनीति के आगे मानवता हारी थी
जीतने की जंग, अब बारी हमारी थी
समझौते न समझा वो
न प्यार कि बाते कोई, समझ आ रही थी
दुश्मन की गंदी चालो को, कुचलने की तैयारी थी
मुश्किल था वो दौर
न घर ,न कपड़े, न खाने को एक कौर
लूट के सब ले गए
न थी उम्मीदों की कोई डोर
फिर भी हिम्मत न हारी थी
टुकड़ों टुकड़ों में होने लगी जंग की तैयारी थी
एक साथ जो जीती न जा सके
उसे चारो ओर से घेरना था
धोखे की रणनीति में हमें
सूझबूझ से काम लेना था
दुश्मन था मजबूत
फिर भी कर ली आजादी की तैयारी थी
टुकड़ों-टुकड़ों में होने लगी जंग की तैयारी थी।
