मत काटो इनके पँखों को
मत काटो इनके पँखों को
बच्चे तो होते हैं जैसे फूलों की कोमल पत्तियाँ।
न करो इन पर ज़ुल्म और न ही करो सख्तियाँ।
ये मासूम हैं, करने दो इन्हें इनकी मनमर्जियाँ।
स्नेह और दुलार दो इनको, न हों ज़्यादतियाँ।
ये तो हैं जैसे जाड़े की ठंड में हल्की सी गर्मियाँ।
तपती गर्मियों में होती शीतल जल की नर्मियाँ।
फूलों के पौधों की फूलों से लदी हुईं डालियाँ।
गेहूं के खेतों में लहलहाती सुनहरी बालियाँ।
सावन के मौसम में पेड़ों पर खिलती कलियाँ।
गुनगुनी सुनहरी धूप की मस्ती वाली सर्दियाँ।
धरती के स्वर्ग कश्मीर की खूबसूरत वादियाँ।
ऊंचे ऊंचे पहाड़ों के बीच में लुभावनी घाटियाँ।
मत छीनो बच्चों की मासूमियत और नादानियाँ।
इन को पाने दो बचपन की कुछ अच्छी स्मृतियाँ।
मत डालो इन पर कड़ी प्रतिस्पर्धा की परेशानियाँ।
इन को खेलने दो और करने दो अबोध शैतानियाँ।
मत काटो इनके पँखों को, भरने दो ऊंची उडारियाँ।
मत बनो इतने क्रूर, मत चलाओ पँखों पर कटारियाँ।
