दर्द भी वही देते हैं
दर्द भी वही देते हैं
दर्द भी वही देते हैं जिन्हें हक़ दिया जाता है,
वरना ग़ैर तो धक्का लगने पर भी माफ़ी माँग लिया करते हैं।
ग़ैर तो फिर भी हमारी बड़ी ग़लती भूल जाता है,
अपने तो हर छोटी ग़लती पर सूली पर टाँग दिया करते हैं।
हमेशा साथ देने का वादा कर अपना छोड़ जाता है,
मगर ग़ैर तो ज़रूरत पड़ने पर सहारा बनकर साथ देते हैं।
सब अपनों को हमारी खुशी पर हक़ लेना आता है,
मगर ग़ैर दुख में अपना बन सबसे पहले ज़िम्मेदारी लेते हैं।
हमारा अपना तो काँटों के बिछौने पर सुला जाता है,
ग़ैर तो ग़लतफ़हमी की नींद से जगाकर होश में ले आते हैं।
अपनों से कुछ उम्मीद करके इंसान क्या ही पाता है,
मगर ग़ैरों से बिना उम्मीद के बहुत कुछ हासिल कर पाते है।
अपनों के साथ तो कभी कभी एक पल भी न भाता है,
मगर ग़ैर तो हमारे लिए खुशियों के सुनहरे पल ले आते हैं।
मुश्किल में ही अपनों और ग़ैरों में फ़र्क़ नज़र आता है,
वरना खुशी की महफ़िल में तो सभी हँसकर मिलने जाते हैं।
(शुरू की दो पंक्तियाँ मशहूर शायर गुलज़ार साहब की हैं)
