कोई फ़र्क नहीं
कोई फ़र्क नहीं
कोई फ़र्क़ नहीं सब कुछ जीत लेने में।
और अंत तक हिम्मत न हारने में।
प्यार की बाज़ी हो या ज़िंदगी को अफ़साना हो।
सनम का दिल जीतना हो या कुछ पाना हो।
शुरू में ही हिम्मत हार जाने से कुछ न मिलता।
अंत तक जूझने से हमारा नाम ही खिलता।
खुशी, संतोष और आत्मविश्वास होंगे मन में।
मेहनत करने की सच्ची थकान होगी तन में।
किसी भी काम में कोई जीता है कोई हारा है।
हिम्मत न मानने वाले ने ख़ुद को संवारा है।
माना कि सब कुछ जीतने वाले का नाम होता है।
मगर टक्कर देना कब आसान काम होता है।
कोशिश करते रहना ही हमारा सबसे बड़ा कर्म है।
मेहनत करते रहना ही हर इंसान का धर्म है।
(शुरू की दो पंक्तियाँ प्रसिद्ध कवि कुंवर नारायण जी की हैं)
