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Amit Singhal "Aseemit"

Abstract Drama Classics

4.5  

Amit Singhal "Aseemit"

Abstract Drama Classics

पैग़ाम

पैग़ाम

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जब भी उनकी नज़रें मुझ पर पड़ी थीं।

एक आँख पर तो बालों की लटें अड़ी थीं।

उनकी लटें ही मेरी समस्या सबसे बड़ी थीं।

तभी हमारी चार नहीं, तीन आँखें लड़ी थीं।


उन्होंने मुझे हमेशा अधूरा ही देखा और जाना।

कभी मुझे पूरा समझा नहीं और न ही पहचाना।

इसलिए उस इश्क़ का अधूरा रह गया अफ़साना।

बड़ा मुश्किल होता है इश्क़ को अधूरा छोड़ पाना।


मेरा पैग़ाम दीवानी लड़कियों ज़रा ग़ौर से सुन लो।

किसी को देखने से पहले बालों की चोटी बुन लो।

तुम बालों को पीछे सँवार लो या जूड़ा ही चुन लो।

अपने लंबे बालों को खुला छोड़ने की छोड़ धुन लो।


मुझे अब इश्क़ के नाम से लगने लगा है बहुत डर।

मैं देखना नहीं चाहता हूँ इश्क़ का वह बुरा मंज़र।

जीता हूँ लड़कियों और इश्क़ से बहुत दूर हटकर।

फिर से वही हुआ तो मैं जी न पाऊँगा सँभलकर।



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