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Sunil Kumar

Inspirational

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Sunil Kumar

Inspirational

स्वाधीन कलम

स्वाधीन कलम

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स्वाधीन कलम जब चलती है

सच को सच झूठ को झूठ लिखती है।


अंतर्मन में होता जो प्रकट उसे करती है

स्वाधीन कलम जब चलती है।


मन में बिखरे भावों को शब्दों का रूप देती है

कह न पातें जो जुबां से बात वो भी कह देती है 

स्वाधीन कलम जब चलती है।


कभी लिखती अंतर्मन की व्यथा 

कभी दीन-हीन का दर्द लिखती है

स्वाधीन कलम जब चलती है।


भूत वर्तमान और भविष्य के 

राज सभी खोलती है

स्वाधीन कलम जब चलती है।


कभी लिखती प्रेम-मनुहार 

कभी दर्द अपार लिखती है

स्वाधीन कलम जब चलती है।


कभी लिखती अनुनय-विनय 

कभी रण का आगाज लिखती है

स्वाधीन कलम जब चलती है।


कभी-कभी तो प्रहार तलवार से तेज करती है

कभी-कभी ये प्रहार तलवार का रोक देती है 

स्वाधीन कलम जब चलती है।



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