गुनाहगार (गजल)
गुनाहगार (गजल)
ऐसा कौन है, जो गुनाहगार नहीं होता,
अपनी ही नजरों में कौन शर्मसार नहीं होता।
गलतियां ही सिखाती हैं हरेक को, किसके लिए
कोई सवाल नहीं होता।
किसे मिल जाती है सफलता मुट्ठी में,
कौन है जो गिर गिर कर सवार नहीं होता।
सुख दुःख तो हरेक भाग्य में होता है,
कहाँ पतझड़, कहाँ बहार नहीं होता।
सबका अपना अपना लक्ष्य होता है, कौन है
जो साहिल का तरफदार नहीं होता।
किसके लिए है पाना आसान सबकुछ,
जीतने वाले का कब हार नहीं होता।
जलता है चिराग उम्मीद रख कर ही अक्सर,
कौन कहता है रौशनी के बाद अंधकार नहीं होता।
कोशिशें जब मुट्ठी में हों सुदर्शन, कौन कहता है
संघर्ष हथियार नहीं होता।
फंस चुकी हो मझधार में नैया,
कौन कहता हैं सहारा पतवार नहीं होता।
डुबते को जिसने बचाया हो,
कौन कहता वो मददगार नहीं होता।
जब ठान ही लिया हो नफरत को मिटाना,
कौन कहता है वो दिलदार नहीं होता।
ढंग जिंदगी गुजारने के बहुत हैं मगर,
मेहनत से बढ़कर कोई रोजगार नहीं होता।
संघर्ष ही जब सच्चाई है सुदर्शन,
तो बैठकर बेड़ा पार नहीं होता।
