फिर छेड़ा है
फिर छेड़ा है


फिर छेड़ा है स्वर मुखर
फिर सिंह नाद गरजा है
फिर हुई है मुखर भारती
फिर विश्व में भारत का डंका बजा है
विश्व गुरु की राह में बड़ते कदम
फिर लहराया तिरंगे का परचम
फिर गुंजायमान हुआ है स्वदेशी स्वर
फिर आत्मनिर्भरता की टंकार बजी है
फिर याद दिलाया विश्व को
हम आर्यभट्टा के वंशज हैं
हम शून्य नहीं हैं संसार में
हम शून्य के अविष्कार करता है
हम मोहताज नहीं किसी चिकित्सा के
gba(255, 255, 255, 0);">हम आयुर्वेद के पूर्वज हैं
अश्वनी कुमार के शिष्य हम
हर जड़ी बूटी के ज्ञाता हैं
फिर जय जय कार का नारा लगा
फिर हुई दीपावली की तैयारी
छोड़ नवीन युग की झोपड़ी
फिर मेरे राम घर पधारे हैं
फिर स्वतंत्र हुई माँ भारती आज
फिर दुश्मन को ललकारा है
फिर छेड़ा है स्वदेशी का नारा
फिर दिलाया विश्वास भारतवर्ष हमारा है
फिर रंगी माँ भारती तीन रंग
फिर तिरंगे का मान बढ़ाया है।
जय हिंद, जय भारत