बेबस किसान
बेबस किसान
निदियों के पानी का जादू
सौंधी मिट्टी की धड़कन
मुक्त बहती पवन की ख़ुशबू
सूर्य किरणों की चमक
कई कई हाथों की ऊष्मा
और एक लम्बी आस भर
है लहलहाती फसल
अनिमियत जल परवाह
मौसम की मार
दूषित पर्यावरण
और बुझी बुझी आस
है भूख का समर्पण
ना समझ हम अब भी
संभलते नहीं करते मनमानी
छेड़ते रहते करते दूषित प्रकृति
हमारी करनी की फल
झेलना पड़ता है अन्नदाता को
लड़ता जाता दिन रात
अपनी ही बेबसी से
वो बेबस किसान ।
(संदेश..पर्यावरण को सुरक्षित बनाना है, जल और नदियों को बचाना है)