शब्द करुण
शब्द करुण
शब्द करुणदिल पीड़ित है
आँखों से धधकती ज्वाला
बरबस बरसती है
क्या बस्ती बेजान है
नहीं रही मर्यादा कोई
या फिर पंगु हो गये सब
एक असहाय रोती रही
हाय री देह
कितने नाच नचाय
अन्त समय
अपनों को तरसती रही
दुर्दशा नारी की है
या दुर्जन को भय नहीं
कैसी ये नियति
अपने ही घर उसको
मिला न्याय नहीं
कब बेटी तेरी मेरी हो गई
मुझको पता चला नहीं
निरुत्तर सी व्यथित आज
ढूँढती शब्द लिखूँ कुछ
पीड़ित दिल
करुण शब्द
धुँधलाती आँखों से
अब क्या लिखूँ
तोड़ दूँ ये कलम क्या
जो बेगुनाहों के
इंसाफ़ की गुहार लगाती नहीं
भावशून्य मानवता
छलनी सभ्यता
बेबस कलम
बेबस इंसाफ़
बेबस इनसान
क़लयुग नाच नचाता बहुत
तुम ही हो अवतरित
कुछ करो भगवन
और ये पीड़ा सही जाती नहीं
और ये पीड़ा सही जाती नहीं।
